लेखिका गीतांजली श्री ने साहित्य जगत का प्रतिष्ठित इंटरनेशल बुकर पुरस्कार जीत लिया है। इस सम्मान को पाने वाली वह हिंदी की पहली लेखिका है। गीतांजली श्री को यह पुरस्कार उनके मूल हिन्दी उपन्यास ‘रेत समाधि’ के अनुवाद ‘टूंब ऑफ सैंड’ के लिए दिया गया है। यह किसी भी भारतीय भाषा में लिखी गई पहली किताब है। ‘रेत समाधी’ का इंग्लिश अनुवाद मशहूर अनुवादक डेजी रॉकवेल ने किया है।
निर्णायक पैनल की राय।
‘रेत समाधी’ उपन्यास पर निर्णायक पैनल के अध्यक्ष फ्रैंक वाएन ने कहा कि बेहद दर्दनाक अनुभवों के वर्णन के बावजूद यह किताब अदभुत रूप से प्रफुल्ति करती है। वाएन के अनुसार यह उपन्यास शोक, खोने और मृत्यु जैसे बेहद गंभीर मामलों को उठाता है और यह अप्रत्याशित रूप से मजेदार और मजाकिया है।
थैंक्यू स्पीच।
बुकर पुरस्कार मिलने के बाद धन्यवाद भाषण में लेखिका गीतांजली श्री ने कहा,
“मैंने कभी बुकर पुरस्कार जीतने की कल्पना भी नहीं की थी। मैंने तो यह सोचा भी नहीं था कि मैं ऐसा कुछ कर सकती हूं। ये एक बड़ा सम्मान है। मैं हैरान हूं, खुश हूं, सम्मानित महसूस कर रही हूं और बहुत कृतज्ञ महसूस कर रही हूं।”
पुरस्कार राशि।
बुकर पुरस्कार विजेता को 50 हजार पाउंड यानी तकरीबन रूपया 50 लाख दिए जाते हैं। इस राशि को लेखक और अनुवादक के बीच अधा-आधा बांटा जाता है। अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार हर साल ऐसी किताबों को दिया जाता है, जिसका अंग्रेजी में अनुवाद किया गया हो और जो यूके या आयरलैंड में प्रकाशित हुई हो।
कौन हैं गीतांजली श्री।
उतर प्रदेश के मैनपुरी में पैदा हुई 64 वर्षीय गीतांजली श्री ने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जेएनयू से इतिहास में एम.ए. किया है। ‘रेत समाधी’ उनका पांचवां अपन्यास है, इससे पहले वह ‘माई’, ‘हमारा शहर उस बरस’, ‘तिरोहित’, ‘खाली जगह’ जैसे नॉवेल लिखे हैं, उनका उपन्यास ‘माई’ ‘क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड’ के लिए नामित हो चुका है।
किताब के बारे में।
‘रेत समाधी’ एक 80 वर्षीय महिला की कहानी है जो अपने पति की मृत्यु के बाद उदास रहती है। आखिरकार, वह अपनी निराशा पर काबू पाती है और विभाजन के दौरान पीछे छूट गए अतीत की कडि़यों को जोड़ने के लिए पाकिस्तान जाने का फैसला करती है।
तारीख: 28/05/2022
लेखक: निशांत कुमार।