फ्रांस में चल रहे 75वें कान्स फिल्म समारोह में राजस्थान के लोक कलाकार मामे खान ने भारतीय दल की तरु से रेड कार्पेट का नेतृत्व कर पहले लोक कलाकार बनकर इतिहास रच दिया है। इस अवसर पर खान पारंपरिक राजस्थानी ड्रेस में दिखे। उन्होेंने मैजेंटा कुर्ते के साथ मैचिंग पायजामा पहना हुआ था, जिस पर भारी कढ़ाई वाली जैकेट डाली गई थी।
जैसलमेर का सत्तो गांव।
राजस्थान में जैसलमेर के सत्तो गांव के रहने वाले मामे खान मंगनियार घराने की 15वीं पीढ़ी है। कई सालों तक मामे ने विभिन्न स्थानीय त्योहारों और शादियों में अपने समुदाय के लोगों के साथ लाेकगीत गाकर अपना जीवन गुजारा है। मामे का कहना है कि संगीत की प्रेरणा उन्हें अपने पिता राणा खान से मिली है, जो उनके घराने के एक बड़े गायक थे।
कैसे आए गायकी की ओर।
शुरूआत में मामे खान का मन लय में लगता था और वह ढोलक बजाना पसंद करते थे। एक बार 7 महीने के टूर पर बेल्जियम गए मामे खान लौटते समय अपनी कीमती ढोलक भूल आए थे। खान को लगा कि उन्हें ढोलक वापस लाने के लिए वापस बेल्जियम जाना होगा। लेकिन उनके पिता राणा खान ने उन्हें गायकी में हाथ आजमाने को कहा और उसके बाद मामे फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
बॉलीवुड में ब्रेक।
वर्ष 2005 में मामे को संगीतकार अभिनेता इला अरूण की बेटी की शादी में गाने का मौका मिला। उनकी गायकी देखकर मुंबई के एक संगीतकार ने म्यूजिशियन शंकर महादेवन को उनका नाम सुझाया। शंकर ने उन्हें स्टूडियो बुलाकर उन्हें एक । फ्रिस्टाइल अलाप गाने को कहा। इस तरह उन्हें बॉलीवुड में पहला ब्रेक मिला और उन्होंने ‘लक बाय चांस’ फिल्म में ‘बाबरे’ गाना गाया।
सुर ही जीवन।
नो बडी किल्ड जेसिका (2011) में ऐतबार, मिर्जीया (2016) में चकोरा जैसे गाने गा चुके मामे, मीरा बाई, कबीर, लाल शाहबाज कलंदर, बुल्ले शाह और बाबा गुलाम फरीद सहित सिंध और राजस्थान के सूफी कवियों के गीतों पर भी परफारमेंस दे चुके हैं। उनके द्वारा गाए गए चौधरी, दरारें दिल, लाल पीली अंखिया जैसे कई लाेकप्रिय गाने हैं।
तारीख: 20/05/2022
लेखक: शत्रुंजय कुमार।