प्रत्येक वर्ष 23 मार्च को भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव की पुण्यतिथि पर हर वर्ष भारत में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन तीनों वीरों को 23 मार्च 1931 को लाहौर जेल में जॉन सान्डर्स की हत्या के आरोप में फांसी दी गई थी। उस वक्त भगत सिंह की उम्र 23 वर्ष, राजगुरु की उम्र 22 वर्ष तथा सुखदेव की उम्र 24 वर्ष थी।
भगत सिंह राजगुरु और सुखदेव को 24 मार्च, 1931 को फांसी दी जानी थी लेकिन उन्हें एक दिन पहले ही 23 मार्च को शाम 7:30 बजे लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।
अंग्रेजी हुकूमत की जड़े हिलाई।
17 दिसंबर 1927 को भगत सिंह और शिवराम राजगुरु ने सहायक पुलिस अधीक्षक जॉन सान्डर्स की गोली मारकर हत्या कर दी। इस काम में उनका सहयोग सुखदेव थापर ने भी दिया। हालांकि, उनका निशाना सान्डर्स नहीं बल्कि पुलिस अधीक्षक जेम्स स्कॉट थे, जिसने लाला लाजपत राय पर लाठीचार्ज का आदेश दिया था, जिस कारण उनका निधन हो गया था।
8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और उनके साथियों ने दिल्ली में केंद्रीय असेंबली के अंदर दो बम फेंके और अपनी गिरफ्तारियां दी। भगत सिंह ने असेंबली में बम फेंकने के बाद जो पर्चे फेकें थे, उसमें लिखा था- “किसी आदमी को मारा जा सकता है लेकिन विचार को नहीं।
जेल में भूख हड़ताल।
जेल में भगत सिंह और अन्य क्रांतिकारी, गोरे कैदियों को मिल रही सुविधाओं के खिलाफ अनिश्चितकालीन भूख हड़ताल पर चले गए। उन्होंने अपने साथ ‘राजनीतिक क़ैदी’ की तरह व्यवहार किए जाने की मांग की। बाद में, भगत सिंह ने अपने पिता के अनुरोध पर 116 दिन की हड़ताल खत्म की।
लाहौर षड्यंत्र केस।
पुलिस ने लाहौर में बम कारखानों पर छापा मारा और सुखदेव व राजगुरु को गिरफ्तार कर लिया। भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु पर सांडर्स की हत्या का मुकदमा चला, तीनों को फांसी की सजा हुई। इस केस को लाहौर षड्यंत्र केस के नाम से भी जाना जाता है।
तीनों शहीदों से संबंधित महत्वपूर्ण तथ्य।
भगत सिंह
लायलपुर जिले के बंगा गांव (अब पाकिस्तान में) में 28 सितंबर, 1907 को जन्मे भगत सिंह के पिता किशन सिंह, चाचा सरदार अजीत सिंह स्वतंत्रता सेनानी थे। भगत सिंह जब छोटे थे तो खेतों में बंदूकें उगाने की बात करते थे, ताकि अंग्रेजों से लड़ सके। 19 साल की उम्र में फांसी पर चढ़ने वाले क्रांतिकारी करतार सिंह सराभा, भगत सिंह के नायक बन गए थे।
शिवराम राजगुरु
24 अगस्त 1908 को महाराष्ट्र में जन्मे शिवराम राजगुरु ने अंग्रेजों के अत्याचारों को करीब से देखा था। इसलिए वह आजादी के लिए क्रांतिकारी संगठन ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’ में शामिल हो गए।
सुखदेव थापर
15 मई 1907 को पंजाब में जन में सुखदेव थापर ने भारत को ब्रिटिश शासन की बेड़ियों से मुक्त कराने का संकल्प लिया। उन्होंने दूसरे क्रांतिकारियों के साथ मिलकर लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ की शुरुआत की, जो युवाओं को स्वतंत्रता संग्राम के लिए तैयार किया।